श्री आद्याशक्तिपीठ के प्रारम्भ का रहस्य
सप्तकुल गुरु वर्ग के ऋषि श्री क्रोधानन्द जी का संकल्प
प्रकृति में किसी भी घटना के पीछे कोई कारण अवश्य विद्यमान होता है। बिना कारण के कोई घटना घटित नहीं होती है। कारण काल है, समय है और वही समय अपने कालचक्र में घटना के होने का सूचक होता है।
एक बार ब्रह्मा पितामह के मन में जगत कल्याण हेतु एक यज्ञ करने का विचार आया और उन्होंने अपने पुत्र महर्षि नारद से कहा, ‘‘मुझे जगत कल्याण हेतु यज्ञ करने की इच्छा हो रही है। अतः यज्ञ के लिए उचित स्थान की खोज करो।‘‘ पिता की आज्ञा पाकर महर्षि नारद स्वर्ग से मृत्यु लोक में पधारे और यज्ञ हेतु स्थान की खोज करने लगे। अंत में उन्होंने पूर्णशैल पर्वत के चरणों में प्रवाहित हो रही सप्त धारा शारदा नदी (काली गंगा) के तट पर यज्ञ करने का निश्चय किया। (यह स्थान वर्तमान में चार महाशक्ति पीठों में से एक पीठ पूर्णागिरि महाशक्ति पीठ है।) इसी पूर्णशैल पर्वत के शिखर पर भगवान विष्णु के चक्र से छिन्न होकर सती देह का नाभि खंड गिरा था। जिसके कारण इस पर्वत का नाम पूर्णशैल पर्वत पड़ा।
दक्ष यज्ञ में शिव अर्धांगिनी महासती ने पिता द्वारा अपने पति के घोर अपमान के कारण महादुःख की अवस्था में यज्ञाग्नि में प्रवेश कर अपने प्राण त्याग दिये। चारों ओर हाहाकार मच गया। भगवान शिव ने यज्ञ स्थल पर पहुँचकर प्राण रहित सती के दग्ध मृत शरीर को अपने कंधे पर लेकर महाक्रोधित होकर महावैराग्य अवस्था में ताण्डव नृत्य आरंभ कर दिया। जिससे सृष्टि विनाश की अवस्था में पहुँच गई। यह देखकर भगवान विष्णु ने सृष्टि रक्षा हेतु अपने सुदर्शन चक्र द्वारा महासती की देह को इक्यावन भागों में विभाजित कर दिया। वे खंड जहाँ-जहाँ गिरे थे, कालचक्र में वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ का निर्माण होता गया।
यज्ञ के लिए स्थान निर्धारित होते ही महर्षि नारद ने पितामह ब्रह्मा को उस स्थान का महत्व बताया। यह सुनकर पितामह ने आनंदोल्लास के साथ यज्ञ की घोषणा की और इस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। निश्चित समय पर सभी देवी-देवता यज्ञ स्थल पर उपस्थित हुए। गुरु बृहस्पति सहित ऋषि मुनियों ने मंगलाचरण के साथ यज्ञ प्रारम्भ किया और बड़े आनंद के साथ यज्ञ निर्विघ्न रूप से पूर्ण हुआ। यज्ञ की पूर्णाहुति के उपरांत सभी देवी देवता स्वस्थान को प्रस्थान किये। परन्तु भगवान शिव एवं पार्वती की पूर्णशैल पर्वत पर भ्रमण करने की इच्छा हुई। उन्होंने पितामह से आज्ञा लेकर पूर्णशैल पर्वत पर भ्रमण हेतु प्रस्थान किया। (इस यज्ञ के बाद ही इस स्थान का नाम ब्रह्मदेव ग्राम पड़ा, जो वर्तमान में उत्तराखंड के चंपावत जिले के टनकपुर क्षेत्र में पूर्णगिरि को जाने वाले मार्ग पर बूम में अवस्थित है।)
जब शिव-पार्वती पूर्णशैल पर्वत के शिखर पर पहुँचे तो वहाँ आशुतोष भगवान शिव सम्मोहित होकर एक स्थान को एकटक निरखने लगे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उनके नेत्र स्तंभित हो गए हों। उनकी यह अवस्था देखकर भगवती पार्वती ने पूछा, ‘‘हे नाथ! आप किस भाव के वशीभूत हैं?‘‘ तब भगवान शिव ने भगवती पार्वती को उस स्थान का महत्त्व बताया। भगवती पार्वती भी उस स्थान को देखने लगीं। तत्पश्चात् आशुतोष भगवान शिव ने सती देह के इक्यावन खंडों में से चार प्रमुख खंडों का महत्व बताया।
प्रथम-खंड
‘‘देवी, जहाँ सती की योनि पीठ के खंड गिरे थे वहाँ कामाख्या महाशक्ति पीठ की स्थापना हुई तथा यह स्थान कैलाश का नीलपर्वत जयंती पर्वतमाला है।’’ (वर्तमान में यह आसाम प्रदेश के गुवाहाटी में अवस्थित है)
द्वितीय-खंड
देवी, ‘‘आप जहाँ इस समय उपस्थित हैं यह स्थान कैलाश का पूर्णशैल पर्वत है। आप जो देख रही हैं यह वही स्थान है जहाँ आपके पूर्वजन्म के सती रूप का नाभि सहित उदर खंड गिरा था। इस पीठ का नाम पूर्णोदरी महाशक्तिपीठ है। यहाँ आपका नाम वैष्णवी है।‘‘ (इसका वर्तमान नाम पूर्णागिरि है। आगम शास्त्र में यह स्थान पूर्णशैल पीठ के नाम से जाना जाता है जो उत्तराखंड के चंपावत जिले के टनकपुर क्षेत्र में पूर्णागिरि में अवस्थित है।)
तृतीय-खंड
‘‘उड्डयन महाशक्तिपीठ, जहाँ आपके उदर का द्वितीय खंड गिरा था वहाँ आपका नाम बिरोजा बिमलेश्वरी है।‘‘ (वर्तमान में यह स्थान उत्कल देश अर्थात् उड़ीसा के पुरी नगर में जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में बिमला महाशक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।)
चतुर्थ-खंड
‘‘चौथा खंड जलंधर महाशक्तिपीठ जहाँ आपके शरीर के वक्षस्थल गिरे। यहाँ आपका नाम मालिनी पड़ा।‘‘ (वर्तमान में यह स्थान पंजाब राज्य के जालंधर नगर के देवी तालाब में अवस्थित है। यह स्थान देवी तालाब नाम से भी प्रसिद्ध है।)
‘‘यह सती देह के इक्यावन खंडों में से चार महत्वपूर्ण खंड हैं। इन चार स्थानों में आगम पद्धति (कौल शाक्ताचार्य) से आपकी नित्य पूजा अर्चना करने से पृथ्वी पर विद्या, समृद्धि, शक्ति एवं भक्ति बनी रहेगी। आगमों के लिए यह चार स्थान विशेष महत्वपूर्ण हैं।‘‘
भ्रमण काल में भगवान शिव ने भगवती पार्वती को सती देह के चार खंडों का विशेष स्वरूप बताकर भगवती संग कैलाश पर्वत के लिए प्रस्थान किया।