राजराजेश्वरी, महात्रिपुरसुन्दरी, षोडशी
श्री कुल
अब मैं ज्ञानगंज से संचालित तीसरे कुल का सामान्य परिचय दें रही हूँ:-
इन दो कुलों के अतिरिक्त एक और कुल है जिसका नाम है ‘‘श्री कुल’’। दसमहाविद्या की चतुर्थ विद्या ‘‘षोडशी’’ अर्थात ‘‘श्री‘‘ को ही रक्तवर्ण आद्या कहा जाता है क्योंकि ‘‘श्री’’ ‘‘रक्तवर्णा आद्या’’ हैं। महाप्रकृति श्री आद्या को समझना, जानना और उनकी उपलब्धि करना जितना कठिन है उतना ही असम्भव है उनका बोध करना क्योंकि वे बोधगम्यता से परे हैं। वे पंचप्रेत के ऊपर उपाधिष्ठ हैं। वे ऐश्वर्यमयी तथा मोक्षकारी विद्या हैं। उनके वर्ग के साधक भी वर्तमान में बड़े दुर्लभ हैं। ‘‘रक्तवर्ण आद्या तारा’’ की इस मण्डली में ‘‘उज्ज्वल वर्ण आद्या’’ का परिचय सूर्य जगत में ‘‘श्री’’ अर्थात् ‘‘षोडशी’’ नाम से है। यह कुल ‘‘सूर्यकुल‘‘ के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त ज्ञानगंज से संचालित एक अन्य धारा भी है जिसे ‘‘परशुराम धारा’’ कहा जाता है। ‘‘षोडशी’’ या ‘‘श्री’’ विद्या को मूलरूप से तीन धाराओं में बांटा
गया है:-
1. आडि विद्या
2. साडी विद्या
3. काडी विद्या
‘‘आडि विद्या’’ धारा अति प्राचीन धारा है, जिसे स्वयं शाम्भव शिव ने उपदेशित किया था।
‘‘साडी विद्या’’ कश्मीरी कौलाचार्यों ने हमारी आर्य सभ्यता को प्रदान किया।
दक्षिण भारत में ऋषि अगस्त्य एवं लोपामुद्रा ने ‘काडी विद्या’ को संचालित किया। इस परम्परा को ‘‘केरल परम्परा’’ भी कहा जाता है।
श्री रक्तवर्णा आद्या अर्थात् ‘‘श्री विद्या’’ के साधक स्वयं देवतागण रहे हैं। ‘‘श्री’’ अर्थात् ‘‘षोडशी’’ समस्त ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। भोगमय, सकाम, भक्ति-मुक्ति प्रदायिनी यह विद्या भगवान भास्कर की अंगश्री ऐश्वर्यमयी हैं। ‘‘श्री’’ बिना किसी भी सृष्टि में सम्पूर्णता नहीं आ सकती है। परशुराम सूक्त में वर्णित ‘‘श्री विद्या’’ परम मोक्षकारी, भोगकारी एवं मोक्षकारी हैं। स्वयं भगवान भास्कर इनके उपासक हैं। यह भगवान भास्कर की इष्ट हैं। ‘‘श्री’’ सूर्य की ऐश्वर्य हैं और ‘‘तारा’’ इनकी शक्ति हैं। इन दो महान शक्तियों से सम्मिलित होकर आदित्य अपनी सृष्टि का संचालन करते हैं। वे ‘‘श्री’’ की उपासना करते हैं। देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, ऋषि-मुनि, मनुष्य इत्यादि समग्र सृष्टि की ऐश्वर्य प्राप्ति की कामना से ‘‘श्री विद्या’’ की उपासना करते हैं।
‘‘श्री कुल’’ के साधकगणों का परिचय
अब हम ‘‘श्री कुल’’ के साधकगणों का परिचय देते हैं:-
ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, चन्द्र, मनु, कुबेर, इन्द्र, नन्दी, हयग्रीव, लोपामुद्रा, अगस्त्य, परशुराम, दुर्वासा, रावण, चित्रांगद आदि के अतिरिक्त ‘‘श्री कुल’’ के और भी अनेक साधक हुए। इनमें से प्रत्येक जन महारथी साधक हंै। सर्वप्रथम सृष्टि में देवतागण ही ‘‘श्री‘‘ के उपासक रहे। प्रत्येक देवता द्वारा राजराजेश्वरी महात्रिपुरसुन्दरी के अलग-अलग मंत्रों की सृष्टि की गयी, क्योंकि जब-जब जिन-जिन देवताओं को जैसी-जैसी आवश्यकता पड़ी तब-तब अपनी आवश्यकतानुसार मंत्रों की सृष्टि की गयी, उनका ध्यान और स्वरूप प्रदान किया गया। इन सोलह आचार्यों द्वारा उनका वर्णन अपने-अपने विधान के अनुसार किये जाने के कारण इनका नाम ‘‘षोडशी‘‘ पड़ा।
1. ‘‘श्री‘‘ के प्रथम देवाचार्य हैं पितामह ब्रह्मा। पितामह ब्रह्मा ने महात्रिपुरसुन्दरी की सृष्टि की रचना हेतु उपासना की।
2. ‘‘श्री‘‘ के द्वितीय देवाचार्य हैं भगवान विष्णु। इस त्रिगुणात्मक सृष्टि की रचना करने के लिए उन्होंने ‘‘श्री‘‘ रूपी कामेश्वरी महात्रिपुरसुन्दरी के मंत्र की उत्पत्ति की एवं ध्यान और स्वरूप दिया। इसके उपरान्त उस स्वरूप को सिद्ध किया और यही ‘‘श्री‘‘ समुद्रमंथनकाल में लक्ष्मी बनकर उनकी अद्र्धांगिनी बनीं और समस्त चराचर सृष्टि की पोषिका बनीं।
3. ‘‘श्री‘‘ के तृतीय देवाचार्य हैं देवाधिदेव महादेव। देवाधिदेव महादेव ने श्री महात्रिपुरसुन्दरी की अद्भुत उपासना की। भगवान शाम्भव ने सर्वप्रथम महात्रिपुरसुन्दरी की ‘‘बाला रूप‘‘ में पूजा एवं अर्चन किया और ‘‘बाला‘‘ मंत्र प्रदान किया। इसके उपरान्त उन्होंने त्रिपुरसुन्दरी की उपासना करके उनका मंत्र एवं उपासना प्रदान किया। इसके उपरान्त देवाधिदेव महादेव ने श्री महात्रिपुरसुन्दरी कामेश्वरी की उपासना की और समस्त कौलाचार्यों के लिए उन्होंने आडि विद्या और साडी विद्या सहित सम्पूर्ण उपासना का
विधि-विधान प्रदान किया।
4. भगवान भास्कर ने श्री महात्रिपुरसुन्दरी की ऐश्वर्यमयी रूप में उपासना की और उनका मंत्र प्रदान किया।
5. कुबेर द्वारा अपार धन-सम्पत्ति एवं ऐश्वर्य के लिए श्री महात्रिपुरसुन्दरी की उपासना की गयी।
श्री कुल के गुरुवर्ग का क्रम भी तीन प्रकार का है, जैसे काली
तारा का है –
1. दिबौघ गुरुगण, 2. सिद्धौघ गुरुगण, 3. मानवौघ गुरुगण।
1. ‘‘श्री कुल’’ के सप्त दिबौघ गुरुगण:-
1. श्रीमद् परप्रकाशानन्द गुरुवे नमः
2. श्रीमद् परमेशानन्द गुरुवे नमः
3. श्रीमद् परम शिवानन्द गुरुवे नमः
4. श्रीमद् कामेश्वरानन्द गुरुवे नमः
5. श्रीमद् मोक्षानन्द गुरुवे नमः
6. श्रीमद् कामानन्द गुरुवे नमः
7. श्रीमद् अमृतानन्द गुरुवे नमः
2. ‘‘श्री कुल’’ के पंचसिद्धौघ गुरुगण:-
1. ईशान
2. तत्पुरूष
3. अघोर
4. वामदेव
5. सदानन्द
ये ‘‘श्री कुल’’ के सिद्धौघ गुरुगण हैं।
3. ‘‘श्री कुल’’ के हमारे मानवौघ गुरुगण का परिचय:-
श्री अखिलेश्वरानन्दनाथ श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः
श्री कालिकानन्दनाथ श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः
श्री सच्चिदानन्दनाथ श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः
इसी प्रकार से शिष्य अपने-अपने स्वगुरु के नाम जोड़कर – ‘‘श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः’’ के साथ पूजन एवं तर्पण करें।
यही है हमारे ‘‘श्री‘‘ कुल का गुरु परिचय एवं परंपरा।