भगवती श्री काली कुल (प्रथम कुल)
इसी ज्ञानगंज के शाक्त सौर परिवार में एक और दिव्य कुल है, जिसे ‘‘प्रथम कुल‘‘ भी कहा जाता है और इसे ही महाप्रकृति, परमासीमाया, अव्यक्त आद्या, चैतन्यमयी, ज्ञानेश्वरी, कामेश्वरी, प्रथम महाविद्या परिवार अथवा ‘‘श्री काली कुल‘‘ के नाम से भी जाना जाता है। भगवती आद्या-महाप्रकृति अव्यक्त नारायणी हैं जिन्हें समझना या उनका बोध करना असम्भव है। जो अजन्मा हैं, जो निश्चल ब्रह्म हैं, जो कारण हैं, जिन्हें ऋषि-मुनि देवी-देवताओं ने भी नहीं समझा, जिन्हें देवाधिदेव शाम्भव महादेव भी नहीं समझ पाये। जिनके चिंता मात्र से ही देवाधिदेव शाम्भव महादेव अर्द्धमात्रा में जाकर शव स्वरूप बन जाते हैं। श्री दुर्गा सप्तशती में ब्रह्म उवाच-
‘‘अर्धमात्रास्थिता नित्या यानुच्चार्या विशेषतः।।‘‘
कहकर नेति-नेति कर दिया गया। उसी दसमहाविद्या की प्रथम विद्या काली परमा प्रकृति हैं।
महाप्रकृति के बारे में मैंने पहले भी उल्लेख किया है परन्तु इस बात का उल्लेख पुनः कर रही हूँ क्योंकि यही चैतन्यमयी सच्चिदानंदमयी दिव्य ब्रह्म हैं। यही अर्धमात्रा स्वरूपा, अभावनीय, अव्यक्त, अजन्मा, चैतन्यमयी महाप्रकृति हैं; जिन्हें स्वयं आशुतोष शाम्भव शिव ने अर्धमात्रा में स्थित होकर अपने ही शव रूप की अनुभूति की। योगियों के लिए कहा गया है –
ॐकारं बिन्दु सायुक्तं नित्यं ध्यायान्ति योगिनः
कामदं मोक्षःदम् चैव श्री ॐकाराय नमो नमः ।।
महायोगियों ने उन्हें ‘‘बिंदु ओंकार’’ रूप कहा तथा सृष्टि की स्थिति एवं लय का कारण बताया और शाम्भवी स्वरूप में उनकी कल्पना की क्योंकि उन्हें ही मूलरूप से देवमाता माना। चैतन्यमय प्रकाश पुरूष आशुतोष शाम्भव शिव ने महाप्रकृति में लय होकर अपने सम्पूर्ण चैतन्य प्रकाश को उन्हीं चरणों में लय करके शव रूप की प्राप्ति की और महायोगेश्वर आदिजगद्गुरु कहलाये। शिव का यह स्वरूप ही जीव के अस्तित्व का मूल कारण है। शिव के इसी स्वरूप में जीव का जन्म, पोषण और लय सम्मिलित होकर जीव के चराचर में जीवन की गति सूर्य के साथ-साथ दिन-रात गतिमान है। इसी का एक और नाम जन्म-मृत्यु है। अव्यक्त आद्या, परमासी, महाप्रकृति, काली, महाआकाश, अव्यक्त सनातनी इनकी जिस साधकवर्ग ने प्राप्ति की है उनमें श्री हरि नारायण और स्वयं शाम्भव शिव हैं। इसके उपरान्त ऋषि-मुनियों ने गहन ध्यान एवं जड़ समाधि में जिस स्वरूप को पाया उन दिव्य ऋषि मुनियों ने अपने-अपने अनुभव के आधार पर उस महाप्रकृति की उपासना करके कई नाम दिये जैसे आद्या, महाकाली, महाकामेश्वरी, कृष्णवर्ण आद्या, रक्तवर्ण आद्या, श्यामवर्ण आद्या, दक्षिणकाली इत्यादि रूपों को ध्यान स्वरूप दिया एवं पूजा पद्धति भी दी। इन पद्धतियों को अलग-अलग कुलों के नाम से बांटा और उनकी साधना पद्धति देकर उपासकों का मार्गदर्शन कराया। अब मैं महाप्रकृति अव्यक्त महाकामेश्वरी, ‘‘काली कुल‘‘ का वर्णन कर रही हूँ:
‘‘श्री काली‘‘ कुल का सप्तकुल गुरुवर्ग:-
1. श्रीमद् प्रहलादानन्द नाथाये गुरुवे नमः
2. श्रीमद् सनकानन्द नाथाये गुरुवे नमः
3. श्रीमद् कुमारानन्द नाथाये गुरुवे नमः
4. श्रीमद् वशिष्ठानन्द नाथाये गुरुवे नमः
5. श्रीमद् क्रोधानन्द नाथाये गुरुवे नमः
6. श्रीमद् सुखानन्द नाथाये गुरुवे नमः
7. श्रीमद् बोधानन्द नाथाये गुरुवे नमः
‘‘श्री काली‘‘ कुल के चार दिबौघ गुरुदेवगण:-
1. श्रीमद् महादेवानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
2. श्रीमद् महाकालानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
3. श्रीमद् त्रिपुरानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
4. श्रीमद् भैरवानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
‘‘श्री काली‘‘ कुल के सोलह श्री सिद्धौघ गुरुदेवगण:-
1. श्रीमद् ब्रह्मानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
2. श्रीमद् पूर्णानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
3. श्रीमद् चलच्चितानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
4. श्रीमद् चलाचलानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
5. श्रीमद् कुमारानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
6. श्रीमद् गोरखानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
7. श्रीमद् भोजदेवानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
8. श्रीमद् प्रजाप्रत्यानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
9. श्रीमद् मूलदेवानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
10. श्रीमद् रन्तीदेवानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
11. श्रीमद् विघ्नेश्वरानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
12. श्रीमद् हुताशनानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
13. श्रीमद् समयानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
14. श्रीमद् नकुलानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
15. श्रीमद् सन्तोषानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
16. श्रीमद् सच्चिदानन्द नाथाये गुरुदेवाय नमः
तीन दिबौघ गुरुदेवगण:-
1. श्रीमद् केशवानन्द नाथ गुरुदेवाय नमः
2. श्रीमद् व्योमकेशानन्द नाथ गुरुदेवाय नमः
3. श्रीमद् नीलकण्ठानन्द नाथ गुरुदेवाय नमः
यह काली कुल का परिचय जो हमने दिया यह मूल साधक गुरुगण का है। इनके बाद गौड़ देश में काली कुल के कई अन्य महान साधक अवतरित हुए जिनमें ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस देव मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त अन्य बहुत से सिद्ध साधक हुए हैं।